ग्रीन टेक्नोलॉजी और सर्कुलर इकोनॉमी: लिथियम आयन बैटरी का बढ़ता ढेर और क्या भारत EVs के कबाड़ को संभाल पाएगा?

Published on: October 28, 2025
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भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने की गति तेज़ है। सरकार की प्रोत्साहन नीतियों, कम परिचालन लागत और जलवायु परिवर्तन के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण, पारंपरिक ईंधन से चलने वाले वाहनों का भविष्य सिमट रहा है। लेकिन इस ‘ग्रीन क्रांति’ का एक अंधेरा पक्ष भी है: लिथियम आयन (Li-ion) बैटरियों का विशाल ढेर, जो जल्द ही सड़कों से बाहर होने लगेगा। इन बैटरियों का जीवनकाल (Life Cycle) आमतौर पर 8 से 15 साल होता है, और 2030 के बाद जब लाखों बैटरियाँ बेकार होने लगेंगी, तब इन्हें सुरक्षित रूप से प्रबंधित करना भारत के लिए एक बड़ी पर्यावरणीय और आर्थिक चुनौती होगी।


 

🔋 लिथियम आयन बैटरी: सोने का कचरा (Golden Waste)

Li-ion बैटरियाँ कई मायनों में अनूठी होती हैं:

1. पर्यावरणीय खतरा

  • विषाक्त पदार्थ: इन बैटरियों में कोबाल्ट, निकेल, और मैंगनीज जैसे भारी धातु (Heavy Metals) और विषाक्त इलेक्ट्रोलाइट्स होते हैं। यदि इन्हें लैंडफिल में फेंक दिया जाता है, तो ये रसायन मिट्टी और भूजल को गंभीर रूप से दूषित कर सकते हैं, जिससे मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा होता है।
  • आग का जोखिम: बैटरियों का अनुचित निपटान (Disposal) उन्हें अस्थिर बना सकता है, जिससे आग लगने का गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

2. आर्थिक अवसर (दुर्लभ धातु)

  • Li-ion बैटरियों में लिथियम, कोबाल्ट, निकेल और तांबा जैसी दुर्लभ और महंगी धातुएं होती हैं। इन धातुओं को खनन (Mining) के माध्यम से प्राप्त करना महंगा और ऊर्जा-गहन होता है।
  • यदि इन बैटरियों को कुशलतापूर्वक रीसाइकल किया जाए, तो इन धातुओं को वापस प्राप्त किया जा सकता है, जिससे कच्चे माल के आयात पर देश की निर्भरता कम होगी और अरबों डॉलर की बचत होगी।

 

🔄 सर्कुलर इकोनॉमी की अनिवार्यता

EV क्रांति की दीर्घकालिक सफलता के लिए सर्कुलर इकोनॉमी (Circular Economy) मॉडल अपनाना अनिवार्य है।

  • क्या है सर्कुलर इकोनॉमी?: यह एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ उत्पादों का जीवनकाल समाप्त होने पर उन्हें फेंकने के बजाय पुनः उपयोग (Reuse), मरम्मत (Repair) और रीसाइकिल किया जाता है। यह ‘लेना-बनाना-फेंकना’ वाले पारंपरिक रैखिक मॉडल के विपरीत है।

बैटरी सर्कुलरिटी के तीन चरण:

चरणउद्देश्यभारत के लिए अवसर
1. सेकंड लाइफ (Second Life)EV बैटरियाँ अपनी 70-80% क्षमता खोने के बाद भी उपयोगी रहती हैं। इन्हें ऊर्जा भंडारण के लिए उपयोग करना।सौर और पवन ऊर्जा ग्रिड के लिए बड़े पैमाने पर बैटरी स्टोरेज सिस्टम बनाना, जिससे ग्रिड को स्थिरता मिले।
2. रीफर्बिशमेंटकुछ बैटरियों को मरम्मत करके फिर से कम गति वाले EV (Low-Speed EV) या गोल्फ कार्ट में उपयोग करना।कम लागत पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए EV समाधान प्रदान करना।
3. रीसाइक्लिंग (Final Recycling)जब बैटरी पूरी तरह से बेकार हो जाए, तो उसके मूल घटकों को वापस प्राप्त करना।घरेलू लिथियम, कोबाल्ट और निकेल की आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करना, जिससे आयात पर निर्भरता खत्म हो।

🚧 भारत के सामने चुनौती और समाधान

भारत ने ई-कचरा प्रबंधन में हमेशा संघर्ष किया है। Li-ion बैटरियों का प्रबंधन करना एक नई और जटिल चुनौती है:

चुनौतियाँ

  1. कच्चे माल का आयात: भारत अपनी लगभग 90% Li-ion बैटरी की मांग के लिए आयात पर निर्भर है।
  2. रीसाइक्लिंग तकनीक का अभाव: रीसाइक्लिंग के लिए विशेष और महंगी तकनीक (जैसे हाइड्रोमेटालर्जिकल प्रक्रिया) की आवश्यकता होती है, जो अभी देश में बड़े पैमाने पर उपलब्ध नहीं है।
  3. संग्रहण नेटवर्क: बेकार बैटरियों को इकट्ठा करने के लिए कोई मानकीकृत और कुशल राष्ट्रीय नेटवर्क मौजूद नहीं है।

समाधान और सरकारी कदम

  • BWM नियम (Battery Waste Management Rules, 2022): सरकार ने उत्पादकों के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility – EPR) नियम लागू किए हैं। इन नियमों के तहत, बैटरी निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे अपने द्वारा बेची गई बैटरियों का एक निश्चित प्रतिशत वापस इकट्ठा करें और रीसाइकल करें।
  • प्रौद्योगिकी निवेश: सरकार निजी कंपनियों और स्टार्टअप्स को घरेलू रीसाइक्लिंग क्षमता विकसित करने के लिए प्रोत्साहन दे रही है, जिससे सुरक्षित और स्केलेबल रीसाइक्लिंग प्लांट्स स्थापित हो सकें।

निष्कर्ष: सतत विकास की दिशा

इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति की सफलता का अंतिम माप केवल सड़कों पर चलने वाले वाहनों की संख्या से नहीं, बल्कि कितनी बैटरियों को सफलतापूर्वक रीसाइकल किया गया है उससे तय होगा। भारत के पास BWM नियमों और EPR ढांचे के माध्यम से Li-ion बैटरियों को ‘कचरा’ नहीं, बल्कि ‘भविष्य के खनन’ (Future Mining) का स्रोत बनाने का एक अनूठा अवसर है। सर्कुलर इकोनॉमी को अपनाकर, भारत न केवल एक स्वच्छ भविष्य की ओर बढ़ेगा, बल्कि दुर्लभ धातुओं के लिए वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक प्रमुख और आत्मनिर्भर खिलाड़ी भी बन जाएगा।

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