हम एक ऐसे डिजिटल युग में जी रहे हैं जहाँ हमारी आँखें और कान धोखा खा सकते हैं। जेनरेटिव AI (Generative AI) टूल, जो कुछ ही मिनटों में किसी व्यक्ति की आवाज़ और चेहरे की नकल कर सकते हैं, ने डीपफेक (Deepfakes) नामक एक विनाशकारी खतरे को जन्म दिया है। भारत में, यह खतरा अब सिर्फ सेलिब्रिटी तक सीमित नहीं रहा है—यह सीधे आम नागरिकों की वित्तीय सुरक्षा को निशाना बना रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, डीपफेक से जुड़े मामलों में 550% की चौंकाने वाली वृद्धि हुई है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को ₹70,000 करोड़ तक के नुकसान का अनुमान है। यह आंकड़ा स्पष्ट करता है कि डिजिटल विश्वास आज सबसे बड़ा साइबर सुरक्षा जोखिम है।
⚠️ डीपफेक फ्रॉड: वित्तीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा
डीपफेक वीडियो और ऑडियो का उपयोग मुख्य रूप से तीन प्रमुख क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहाँ यह विनाशकारी परिणाम दे रहा है:
1. वित्तीय और कॉर्पोरेट फ्रॉड
- वॉइस क्लोनिंग (Voice Cloning): अपराधी AI का उपयोग करके CEO, परिवार के सदस्यों या वरिष्ठ अधिकारियों की आवाज़ की हूबहू नकल करते हैं। वे फिर अर्जेंसी दिखाते हुए वॉयस मैसेज या कॉल करते हैं, जिससे कर्मचारियों या पीड़ितों को तुरंत बड़ी रकम ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया जाता है।
- डिजिटल अरेस्ट और वसूली: फ्रॉड करने वाले डीपफेक वीडियो का उपयोग करके खुद को सरकारी अधिकारी बताते हैं और पीड़ित को डराकर ‘डिजिटल अरेस्ट’ का झांसा देते हैं, जिससे व्यक्ति डरकर अपनी जीवन भर की जमापूंजी गंवा देता है।
2. गलत सूचना और सामाजिक अस्थिरता (Misinformation)
- लोकतंत्र को खतरा: चुनाव के दौरान या किसी सामाजिक मुद्दे पर, डीपफेक वीडियो का उपयोग करके नेताओं या महत्वपूर्ण हस्तियों को ऐसे बयान देते हुए दिखाया जाता है जो उन्होंने कभी नहीं दिए। यह गलत सूचना समाज में भ्रम, घृणा और अस्थिरता पैदा करती है।
- व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को नुकसान: AI का उपयोग करके लोगों के अपमानजनक या आपत्तिजनक वीडियो बनाए जाते हैं, जिससे उनकी व्यक्तिगत और पेशेवर प्रतिष्ठा को अपरिवर्तनीय क्षति पहुँचती है।
3. पहचान की चोरी (Identity Theft)
- डीपफेक का उपयोग KYC सत्यापन को बायपास करने के लिए किया जा सकता है। चेहरा या बायोमेट्रिक डेटा का उपयोग करने वाले सिस्टम को डीपफेक वीडियो से धोखा दिया जा सकता है, जिससे अपराधी पीड़ित के नाम पर खाते खोल सकते हैं या ऋण ले सकते हैं।
⚖️ सरकार का हस्तक्षेप: AI कंटेंट लेबलिंग
डीपफेक के बढ़ते खतरे को देखते हुए, भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 (IT Rules) में संशोधन का मसौदा पेश किया है, जो AI रेगुलेशन की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- अनिवार्य लेबलिंग: मसौदे के अनुसार, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपलोड किए जाने वाले AI-जनरेटेड कंटेंट को स्पष्ट रूप से लेबल करना अनिवार्य होगा।
- न्यूनतम कवरेज: यह लेबल विज़ुअल कंटेंट में स्क्रीन के कम से कम 10% हिस्से को कवर करना चाहिए, और ऑडियो क्लिप में शुरुआती 10% अवधि तक सुनाई देना चाहिए।
- प्लेटफॉर्म की जवाबदेही: बड़े प्लेटफॉर्म्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि यूजर द्वारा अपलोड की गई सिंथेटिक सामग्री पर यह लेबल स्थायी रूप से लगा रहे और इसे हटाया न जा सके। नियम न मानने पर प्लेटफॉर्म अपनी कानूनी प्रतिरक्षा खो सकते हैं।
🛡️ खुद का बचाव कैसे करें: डीपफेक को पहचानने के तरीके
चूंकि AI तकनीक लगातार विकसित हो रही है, इसलिए सतर्कता ही सबसे बड़ा बचाव है। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे आप डीपफेक की पहचान कर सकते हैं:
सुरक्षा मंत्र: सोचें, सत्यापन करें, फिर क्लिक करें। किसी भी वित्तीय लेनदेन या व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से पहले, दूसरे माध्यम (जैसे मैसेज या अलग फोन नंबर) से व्यक्ति की पहचान की पुष्टि (Verify the Identity) अवश्य करें।
निष्कर्ष
डीपफेक का खतरा हमारी डिजिटल दुनिया की नींव को हिला रहा है। भारत में 550% की वृद्धि और ₹70,000 करोड़ के संभावित नुकसान का आँकड़ा केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक तत्काल आह्वान है। सरकार, टेक्नोलॉजी कंपनियों और आम नागरिकों को मिलकर काम करना होगा। AI लेबलिंग जैसे कड़े नियम, जनता में डिजिटल साक्षरता बढ़ाना और हर व्यक्ति द्वारा संदेह की संस्कृति (Culture of Skepticism) अपनाना ही इस नए साइबर खतरे से निपटने का एकमात्र रास्ता है।






















