Geopolitics और सप्लाई चेन: चिप वॉर और भारत का सेमीकंडक्टर सपना: ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति के बीच, भारत कैसे बन रहा है चिप निर्माण का केंद्र?

Published on: October 28, 2025
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आज की दुनिया में, कोई भी उपकरण—चाहे वह आपका स्मार्टफोन हो, कार हो, या मिसाइल—बिना सेमीकंडक्टर चिप्स के काम नहीं कर सकता। ये चिप्स आधुनिक अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति की रीढ़ हैं। पिछले कुछ वर्षों में, वैश्विक भू-राजनीति (Geopolitics) का केंद्रबिंदु मध्य पूर्व के तेल के कुओं से हटकर ताइवान और दक्षिण कोरिया की हाई-टेक चिप फैक्ट्रियों (Foundries) पर केंद्रित हो गया है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहा ‘चिप वॉर’ इस बात का स्पष्ट संकेत है कि चिप्स अब सिर्फ व्यापारिक वस्तु नहीं हैं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं। इसी वैश्विक उथल-पुथल ने भारत के लिए आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक द्वार खोल दिया है।


⚔️ चिप वॉर और ‘चाइना प्लस वन’ की रणनीति

वैश्विक सप्लाई चेन के अस्थिर होने के पीछे दो प्रमुख कारण हैं:

1. अमेरिका-चीन प्रौद्योगिकी प्रतिद्वंद्विता

  • तकनीकी नियंत्रण: अमेरिका का मानना है कि उन्नत चिप टेक्नोलॉजी चीन की सैन्य और निगरानी क्षमताओं को बढ़ावा दे सकती है। इसलिए, अमेरिका ने चीन को उन्नत चिप टेक्नोलॉजी और निर्माण उपकरण की बिक्री पर कड़े प्रतिबंध (Export Controls) लगाए हैं।
  • प्रतिशोध: चीन भी पलटवार कर रहा है, जिससे वैश्विक तकनीकी सप्लाई चेन में अनिश्चितता और तनाव बढ़ गया है।

2. ‘चाइना प्लस वन’ (China Plus One)

  • जोखिम प्रबंधन: कोविड-19 महामारी के दौरान, दुनिया ने महसूस किया कि वैश्विक सप्लाई चेन का चीन पर अत्यधिक निर्भर होना कितना जोखिम भरा है।
  • विकेंद्रीकरण: इसलिए, दुनिया भर की मल्टीनेशनल कंपनियाँ (MNCs) अब चीन में अपने निवेश को बरकरार रखते हुए, उत्पादन के लिए एक दूसरा केंद्र (Plus One) तलाश रही हैं, ताकि आपूर्ति श्रृंखला का जोखिम कम किया जा सके। भारत इस ‘प्लस वन’ रणनीति के लिए सबसे आकर्षक विकल्प बनकर उभरा है।

भारत का सेमीकंडक्टर सपना: आत्मनिर्भरता और राष्ट्रीय सुरक्षा

भारत को चिप निर्माण में आत्मनिर्भर होने की आवश्यकता केवल आर्थिक विकास के लिए नहीं, बल्कि सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी है।

I. राष्ट्रीय सुरक्षा की अनिवार्यता

  • सैन्य अनुप्रयोग: आधुनिक रक्षा प्रणाली, मिसाइल मार्गदर्शन (Missiles Guidance), रडार और साइबर सुरक्षा प्रणालियाँ अत्यधिक विशिष्ट चिप्स पर निर्भर करती हैं। यदि भारत चिप्स के लिए विदेशी स्रोतों पर निर्भर रहता है, तो युद्ध या संकट की स्थिति में आपूर्ति बाधित हो सकती है।
  • जासूसी और बैकडोर: विदेशी निर्मित चिप्स में ‘बैकडोर’ (गुप्त प्रवेश द्वार) होने का जोखिम होता है, जिसका उपयोग जासूसी या महत्वपूर्ण प्रणालियों को निष्क्रिय करने के लिए किया जा सकता है। स्वदेशी चिप्स इस खतरे को खत्म करते हैं।

II. सरकारी प्रोत्साहन: PLI और $10 बिलियन का मिशन

भारत सरकार ने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक निर्णायक कदम उठाया है:

  • सेमीकंडक्टर प्रोत्साहन योजना: सरकार ने भारत में सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले फैब्रिकेशन यूनिट स्थापित करने के लिए $10 बिलियन से अधिक के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की है।
  • प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI): इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए PLI योजना ने पहले ही Apple iPhone के उत्पादन को भारत में लाकर सफलता साबित कर दी है, और अब यही मॉडल चिप्स के लिए दोहराया जा रहा है।

III. वैश्विक निवेश का आकर्षण

भारत की नीतियों ने विश्व की प्रमुख कंपनियों को आकर्षित करना शुरू कर दिया है:

  • माइक्रोन टेक्नोलॉजी (Micron Technology): अमेरिकी मेमोरी चिप दिग्गज माइक्रोन ने भारत में अपनी असेंबली और टेस्टिंग (ATMP) सुविधा स्थापित करने की घोषणा की है, जो भारत के सेमीकंडक्टर मिशन के लिए एक बड़ा कदम है।
  • फॉक्सकॉन (Foxconn): इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण की दिग्गज कंपनी फॉक्सकॉन भी भारत में चिप फैब्रिकेशन यूनिट स्थापित करने के लिए गंभीर रूप से विचार कर रही है।

🚧 चुनौतियाँ और भविष्य की राह

चिप निर्माण एक अत्यंत जटिल, पूंजी-गहन और पानी-गहन उद्योग है। भारत के सपने को साकार करने के लिए कई चुनौतियों पर काबू पाना होगा:

  • जल और बिजली की आपूर्ति: चिप फैब्रिकेशन यूनिट्स (Fabs) को अत्यधिक स्थिर बिजली आपूर्ति और भारी मात्रा में अल्ट्रा-शुद्ध जल (Ultra-Pure Water) की आवश्यकता होती है। भारत को इस बुनियादी ढांचे को प्राथमिकता से विकसित करना होगा।
  • कौशल और विशेषज्ञता: भारत में चिप डिज़ाइन (Design) में प्रतिभा है, लेकिन फैब्रिकेशन के लिए आवश्यक उच्च-कौशल वाले तकनीकी कर्मियों की कमी है। इसके लिए विशेष अकादमिक साझेदारी और प्रशिक्षण केंद्रों की ज़रूरत है।
  • लंबा gestation पीरियड: फैब स्थापित करने में अरबों डॉलर और कई साल लगते हैं, इसलिए सरकार को दीर्घकालिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी।

निष्कर्ष: निर्णायक दशक

भारत का सेमीकंडक्टर सपना केवल एक आर्थिक लक्ष्य नहीं है; यह वैश्विक भू-राजनीतिक शिफ्ट का लाभ उठाने, राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने और टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनने का एक निर्णायक प्रयास है। ‘चाइना प्लस वन’ रणनीति के तहत भारत एक असेंबली हब से निर्माण और डिजाइन केंद्र (Design and Manufacturing Hub) बनने की राह पर है। यदि भारत सरकार अपनी नीतियों और प्रोत्साहनों को स्थिर रखती है और आवश्यक बुनियादी ढांचा विकसित करती है, तो यह दशक भारत को न केवल विश्व का एक प्रमुख चिप उपयोगकर्ता, बल्कि एक शक्तिशाली चिप निर्माता और निर्यात केंद्र भी बना देगा।

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